Wednesday, 30 May 2012

जातो रियो;हात ती काम करवा को जमानो !



दो दन पेला म्हारा एक दोस्त घरे आया. वात नवी पीढ़ी री चाल री थी. केवा लागा म्हारा छोरा ये  फ़ैक्ट्री हमार ली हे. एक दन नानो फ़ैक्ट्री जई रियो थो तो देख्यो कि वणीरी कार पंक्चर.केवा लागो अबे कई करूँ ? म्हें बोल्यो पहियो बदली ले.ऊ केवा लागो अबार थोड़ीक देर में आपरो ड्रायवर अई जायगो,ऊ बदली देगा. म्हें क्यो नाना आज तो ड्रायवर री छुट्टी हे,ऊ तो नी आवा वारो.नाना ये क्यो तो फ़ेर म्हें टेक्सी बुलई लुँ कई ? दोस्त भई बोल्या नाना तू भण्यो लिख्यो इंजीनियर हे,कदि यो पहियो रस्ता में पंक्चर वई जातो तो कई करतो ? कोशिश कर,चल अपण दोई बदली लाँ. नानो अनमनो वई ने बाबूजी रा हाते काम पे लग ग्यो. वात छोटी सी हे पण अणी में एक इशारो हे कि म्हें लोग अबे हगरा काम वाते कोई न कोई मनख ढूँढवा लाग ग्या हाँ. पेला घर री छत पे टंकी  धोणो वे,स्कूटर रो प्लग बदलनो वे,बगीचा की मेंदी की छँटई करणी वे,बिजली रो फ़्यूज बदलनो वे,ई हगरा काम राजी-खुसी हात ती करता था. अबे म्हाणे पास एक तो टेम री कमी रो म्होटो बहानो हे और दूसरी वात अबे हर काम में आदमी और खास जवान पीढ़ी ‘म्होटा काम और नाम काम’ की नजर ती देखवा लाग ग्या हे.
एक जमानो थो जद आपये आपरा पलंग पे निवाड़ ने माचा पे सुतली हाथ थी बदली वेगा. कसो मजो आतो थो घर रा बढ़ा-बूढ़ा का काम में हाथ बटावता. अब निवाड़ वारा पलंग खतम वई ग्या ने मूँगा-मूँगा डबल बेड अई ग्या हे जणी पे ‘गुड़-स्लीप’ कोनी आवे हे. कतरा काम था जो म्हें लोग हात ती करता था.अपणा कपड़ा हात ती प्रेस करता था. घर रा स्टोव ने बर्नर री सफई करता था.कुड़ा में चरी-बटलोई पड़ जाती तो वणी ने काड़ता था. किताबाँ-कापियाँ पे हाथ ती कवर चढ़ाता था. सायकल-स्कूटर के दीतवार का दन असी चकाचक धोता कि जसतर अपण खुद हापड़ी रियाँ हाँ. जूता री पालिश,चौमासा का पेला घर रा कवेलू री साफ़-सफई जैसा नरा काम था जणी खूब मजो आतो ने एक तरे की प्रतिस्पर्धा मन में वेती की म्हें यो काम सबती पेला पूरो करूँ.
चौका में भी अपणी बई-दादी-जीजी को हाथ बटावा में आनंद वेतो थो. घर में अथाणो वणतो तो केरी लेवाने वजार जाता था. सैवायाँ,बड़ी,पापड़ रो काम वेतो तो पास-पडौस री भाभियाँ-बेनाँ अपणा आगंण में भेली वेती ने सहकार री भावना ती काम निपटी जातो ने म्हें लोग वणाकी गप्पा-गोष्ठी को मजो लेता.वणी में गीत वेता,गारियाँ वेती,केवाड़ा वेता,गम्मत वेती ने अणी बहाना ती अपणी बोली री खुसबू नवी पीढ़ी सुदी आफ़र्ता पोंची जाती.
अबे नवी पीढ़ी ये अपणी एक आराम री नवी दुनिया बसई ली हे.वी हर काम वास्ते बजार को रस्तो देखे हे. घर रा नौकर पे भरोसो करे हे और अपणी कमर के तकलीफ़ नी दे हे. अणी मामला में अपणी घर री बेन बेटियाँ रो मामलो ऊँचो हे. वी जतरी मेहतन एक परिवार में करे हे वणी पे म्हें लोगाँ को ध्यान नी जावे हे. कोशिश वेणी चईजे कि म्हें लोग भी वणाका काम में सहयोग कराँ. आज आपरी जिन्दगी में आराम और तसल्ली हे तो वणी को आखो श्रेय अपणी भारतीय नारी के देणो पड़ेगा क्योंकि वणी री मदद और तत्परता के वगेर आपरी दुनियादारी री आखी दौड़-भाग और झाँकी ठंड़ी पड़ी सके हे. मातृ और नारी दिवस पर मजमा जमावा,ग्रीटिंग कार्ड,ईमेल,एस.एम.एस.भेजवा का अलावा एक काम यो भी वेणो चावे कि म्हें लोग यो प्रस्ताव पास कराँ कि म्हें अपणी गृहलक्ष्मी का परिश्रम में सहयोग कराँगा. महिला और पत्नी पे ठिठोली का मैसेज तो भेजवा में म्हाँ लोगाँ ने घणो आनंद आवे हे पण कदि सोचो एक दन हवेरे-हवेरे आपरी बेड-टी नी मिले तो आखो दन ‘बेड’ वई जाय हे. आपरा कपड़ा-लता,कागज पत्तर,जोखिम,साज-सज्जा करवा वारी बेन बेटियाँ का काम-काज में म्हें मनख लोग भी जुट जावाँ तो पैसा भी बचई सकाँ हाँ और नवी पीढ़ी के एक संदेश भी दई सकाँ हाँ कि हात ती काम करवा को मजो कई वे हे.
मजा री वात या हे कि याज नवी पीढ़ी जद विदेस जावे तो अपणा फ्लैट और कमरा रो हगरो पसारो खुद हमारे हे हे.वठे कोई नौकर-चाकर नाम री चिडिया नी मिले हे. जद तक म्हें अपणा घर रा बच्चा होण के रोज एक काम हात ती करवा री प्रेरणा नी दाँगा,वी घर रा कणी भी काम में रुचि ने लेगा. हालत या वई गी हे कि या नवी पीढ़ी दीवाल पे एक खील ठोकवा रा वाते भी कारपेंटर रा भरोसे रेवा लाग गी हे. टेम रेता चेतो दासाब नी तो ई लोग अणी खील पे आपरो फोटू टाँगवा ने वणी पे फूल माला चढ़ावा वास्ते भी कणी एजेंसी ने ठेको दई देगा.आप उपर ती बैठा बैठा कई नी करी सकोगा,सिवा कुड़वा के....जय राम जी की.

Saturday, 26 May 2012

रामा दादा की याद और ई गल्ती काडवावारा...




अई गी हे रामादादा की याद !
 रामनारायण उपाध्याय निमाड़ी लोक साहित्य का अनूठा चितेरा था.जीवन भर गाँधीवादी दर्शन का उपासक रिया.दिखावटी खद्दरधारी कोनी वसो जीवन जियो. एक ती बढिया एक निबंध और लेख लिख्या पण वणी में लोक-जीवन री गंध हमेशा जिन्दा री. नईदुनिया में भी रामा दादा का एक ती बढिया एक रचना प्रकाशित वेती रेती थी.माखनलाल चतुर्वेदी,किशोरकुमार का अलावा रामादादा भी वी नामी हस्ती था जिनको नाम खण्डवा का साते याद आवे हे.भवनीप्रसाद मिश्र,विषपायीजी,बालकवि बैरागी,ज्ञानरंजन का अलावा रामादादा भी असा घणामानेता था जो तुरंत का पेला चिट्ठी को जवाब देता था.या आछी वात हे कि हिन्दी साहित्य समिति ये जिण साहित्यसेवी लोगाँ को कैलेण्डर छाप्यो हे वणी में दादा भी मौजूद हे. खण्डवा में रेता रेता रामादादा को संपर्क देश भर का लोगाँ ती थो ने वणाको आदर भी थो. वणा सरीखा लोग समाज और साहित्य वास्ते एक जगमगातो कीर्ति-स्तंभ था.आपने तो नगे हे कि लिखवा-भणवा वारा का पास सबती बड़ी चीज वे हे अभाव.असोज एक टेम दादा की जिन्दगी आयो.उन्नीस-बीस लोगाँ का कुनबा में रिपया को टोटो पड्यो.नगर सेठ पूनमचंद गुप्ता और रामादादा की दोस्ती कृष्ण सुदामा सरीखी. दादा ये गुप्ताजी के तकलीफ बतई.गुप्ताजी बोल्या घरे अई के दई जाऊँगा.हाँजे वी रामादादा रा अठे आया ने एक पुड़की में रिप्या राखी दिया ने कियो कि में जाऊँ वींका बाद देखजो ने कमती पड़े तो केजो.ध्यान राखजो यो पैसो उधारी खाता में नी ;दोस्ती का खाता में दियो हे.गुप्ताजी का जावा का बाद रामादादा ये पुड़की खोली तो देख्यो वणी में दस हजार रिप्या. अतरी जरूरत तो नी थी. दादा के राते नींद नी अई.हवेर-पेली गुप्ताजी रा अठे पोंच्या ने बोल्या भई अतरा रिप्या की जरूरत कोनी.जतरी जरूरत थी राखी लिया हे बाकी का ई हमारो. गुप्ताजी ना-नुकुर नी करी सकता था,वणाके अपणा मित्र सुदामा का स्वाभिमान की खबर थी. वणाये रिप्या राख ल्या. रामादादा बोल्या पूनम भई ब्याज तो नी दूँगा पण तमारी उधारी म्हारा माथा पे रेवेगा.सौ टंच ई इंतजाम वेताज दई दूँगा.गुप्ताजी कई केता.दोई दोस्त ये जोर ती दाँत काड्या ने देखता देखता जमानो बदली ग्यो. अबे जीवन रा हगरा व्यवहार कागज पत्तर विना नी वे हे. अबे नी तो वसा कृष्ण सुदामा की जोडी री ने नी री वसी प्यार की पुड़की. 

गल्ती काड़वा वारा ठेकेदार !
अठे वात वणाकी करी रियो हूँ जिनके अणी वात को दु:ख रेवे हे कि कोई दूसरो मनख कोई आछो काम कसतर करी सके हे. हर गाम ने समाज में असा महान(?)लोग रेवे हे जो रेडीमेड मजमा में जावे हे ने वठे लोगाँ री गल्तियाँ काड़वा को काम करे हे. अणाकी सबती बड़ी खासियत या रेवे हे कि  इण लोगाँ कि खुद री कोई संस्था ने सहयोग नी रेवे हे. ई हगरी जगा जुबानी जोड़-भाग करे हे ने लोगाँ का माजना का काँकरा करवा में अणाके खास मजो आवे हे. अणी प्रजाति का लोग साहित्य,कविता,नाटक,फ़िल्म,चित्रकला और संगीत का इलाका का साथ समाज सेवा में भी रेवे हे. ई एक रोपो नी लगावे हे ने पेड़ नी काटनो चावे असो उपदेश देवा में सबती आगे रे हे. अणाकी दिनचर्या को खास काम यो रे हे कि ई हवेरे दतून करता करताज सोची ले हे कि आज कणी की महफिल को कबाड़ो करणो हे. भावसार बा ये अणी तरे का किरदार पे बुलावो नाम की नामी कविता लिखी हे जणीका बारा में कदि फेर वात कराँगा पण अबार तो आपने यो वतई दूँ कि ई गल्ती काड़वा वारा ठेकेदार खासतौर पे पेट का रोगी रे हे. कठे भी कई अच्छो होवा की खबर अई नी और अणाका पेट में मरोड़ा सुरु वई जाय हे. अणाके खास दु:ख यो वे हे कि म्हें तो यो काम करी नी सक्यो यो म्हारो बेटो कठे से यो बाँसड़ो उठई रियो हे. मजा की वात या हे कि असा लोगाँ के चावा लोगाँ की एक खास गेंग वे हे. म्हारे तो आज तक या समझ में नी अई कि दु:खी वई के ई लोग सुखी कसतर रे हे;पण हे साब लोगाँ की तासीर हे असी.ई कणी वात पे भी आपका मैफल की आलोचना करी सके हे.ई कई सके हे यो प्रोग्राम अठे क्यों कर्यो;वठे क्यूँ नी कर्यो,अणी के खास मेमान क्यूँ बुलायो,अणी ने कई अक्कल हे,वणी ने कुण पेचाणे हे.आप गादी-तकिया बिछाओ तो ई केगा कुर्सी वेती तो हऊ वेतो,आप कुर्सी बिछई तो दो तो केगा अरे भई यो कई कर्यो,यो तो भारतीय शास्त्रीय संगीत को कारज थो,अठे तो नीचे बैठवा में मजो आतो.केवा को मतलब हे कि आप कई भी करो ई लोग दु:खी का दु:खी रेवे हे. इण लोग के पेचाण को खास संकट रे हे ने ई सोचे हे कि म्हाँकी दुकान हमेशा चालनी चइजे.पण दा साब वात या हे,जमानो बदले हे,मिजाज बदले हे,सोच बदले हे,लोगाँ की ओरखाण बदले हे,अरे आप भी तो बदलो नी.अणा लोगाँ ने सोचणो चावे कि आज आपरा मूँडा पे लोग आपरी इज्जत करी रिया हे पीठ पाछे आपरी आबरू का काँकरा करे हे. असो टेम भी आएगो जद आपरा विना भी यो जमानो भी चलेगा ने मजमा भी चलेगा.आप मठाधीश नी वण्या था वणी का पेला भी तो यो मेलो चाल रियो थो हुकुम !