अई गी हे रामादादा की याद !
रामनारायण उपाध्याय निमाड़ी लोक साहित्य का अनूठा चितेरा था.जीवन भर
गाँधीवादी दर्शन का उपासक रिया.दिखावटी खद्दरधारी कोनी वसो जीवन जियो. एक ती बढिया
एक निबंध और लेख लिख्या पण वणी में लोक-जीवन री गंध हमेशा जिन्दा री. नईदुनिया में
भी रामा दादा का एक ती बढिया एक रचना प्रकाशित वेती रेती थी.माखनलाल
चतुर्वेदी,किशोरकुमार का अलावा रामादादा भी वी नामी हस्ती था जिनको नाम खण्डवा का
साते याद आवे हे.भवनीप्रसाद मिश्र,विषपायीजी,बालकवि बैरागी,ज्ञानरंजन का अलावा
रामादादा भी असा घणामानेता था जो तुरंत का पेला चिट्ठी को जवाब देता था.या आछी वात
हे कि हिन्दी साहित्य समिति ये जिण साहित्यसेवी लोगाँ को कैलेण्डर छाप्यो हे वणी
में दादा भी मौजूद हे. खण्डवा में रेता रेता रामादादा को संपर्क देश भर का लोगाँ
ती थो ने वणाको आदर भी थो. वणा सरीखा लोग समाज और साहित्य वास्ते एक जगमगातो
कीर्ति-स्तंभ था.आपने तो नगे हे कि लिखवा-भणवा वारा का पास सबती बड़ी चीज वे हे
अभाव.असोज एक टेम दादा की जिन्दगी आयो.उन्नीस-बीस लोगाँ का कुनबा में रिपया को
टोटो पड्यो.नगर सेठ पूनमचंद गुप्ता और रामादादा की दोस्ती कृष्ण सुदामा सरीखी.
दादा ये गुप्ताजी के तकलीफ बतई.गुप्ताजी बोल्या घरे अई के दई जाऊँगा.हाँजे वी
रामादादा रा अठे आया ने एक पुड़की में रिप्या राखी दिया ने कियो कि में जाऊँ वींका
बाद देखजो ने कमती पड़े तो केजो.ध्यान राखजो यो पैसो उधारी खाता में नी ;दोस्ती का
खाता में दियो हे.गुप्ताजी का जावा का बाद रामादादा ये पुड़की खोली तो देख्यो वणी
में दस हजार रिप्या. अतरी जरूरत तो नी थी. दादा के राते नींद नी अई.हवेर-पेली
गुप्ताजी रा अठे पोंच्या ने बोल्या भई अतरा रिप्या की जरूरत कोनी.जतरी जरूरत थी
राखी लिया हे बाकी का ई हमारो. गुप्ताजी ना-नुकुर नी करी सकता था,वणाके अपणा मित्र
सुदामा का स्वाभिमान की खबर थी. वणाये रिप्या राख ल्या. रामादादा बोल्या पूनम भई
ब्याज तो नी दूँगा पण तमारी उधारी म्हारा माथा पे रेवेगा.सौ टंच ई इंतजाम वेताज दई
दूँगा.गुप्ताजी कई केता.दोई दोस्त ये जोर ती दाँत काड्या ने देखता देखता जमानो
बदली ग्यो. अबे जीवन रा हगरा व्यवहार कागज पत्तर विना नी वे हे. अबे नी तो वसा
कृष्ण सुदामा की जोडी री ने नी री वसी प्यार की पुड़की.
गल्ती काड़वा वारा ठेकेदार !
अठे वात वणाकी करी
रियो हूँ जिनके अणी वात को दु:ख रेवे हे कि कोई दूसरो मनख कोई आछो काम कसतर करी
सके हे. हर गाम ने समाज में असा महान(?)लोग रेवे हे जो रेडीमेड मजमा में जावे हे
ने वठे लोगाँ री गल्तियाँ काड़वा को काम करे हे. अणाकी सबती बड़ी खासियत या रेवे हे
कि इण लोगाँ कि खुद री कोई संस्था ने
सहयोग नी रेवे हे. ई हगरी जगा जुबानी जोड़-भाग करे हे ने लोगाँ का माजना का काँकरा
करवा में अणाके खास मजो आवे हे. अणी प्रजाति का लोग
साहित्य,कविता,नाटक,फ़िल्म,चित्रकला और संगीत का इलाका का साथ समाज सेवा में भी
रेवे हे. ई एक रोपो नी लगावे हे ने पेड़ नी काटनो चावे असो उपदेश देवा में सबती आगे
रे हे. अणाकी दिनचर्या को खास काम यो रे हे कि ई हवेरे दतून करता करताज सोची ले हे
कि आज कणी की महफिल को कबाड़ो करणो हे. भावसार बा ये अणी तरे का किरदार पे बुलावो
नाम की नामी कविता लिखी हे जणीका बारा में कदि फेर वात कराँगा पण अबार तो आपने यो
वतई दूँ कि ई गल्ती काड़वा वारा ठेकेदार खासतौर पे पेट का रोगी रे हे. कठे भी कई
अच्छो होवा की खबर अई नी और अणाका पेट में मरोड़ा सुरु वई जाय हे. अणाके खास दु:ख
यो वे हे कि म्हें तो यो काम करी नी सक्यो यो म्हारो बेटो कठे से यो बाँसड़ो उठई
रियो हे. मजा की वात या हे कि असा लोगाँ के चावा लोगाँ की एक खास गेंग वे हे.
म्हारे तो आज तक या समझ में नी अई कि दु:खी वई के ई लोग सुखी कसतर रे हे;पण हे साब
लोगाँ की तासीर हे असी.ई कणी वात पे भी आपका मैफल की आलोचना करी सके हे.ई कई सके
हे यो प्रोग्राम अठे क्यों कर्यो;वठे क्यूँ नी कर्यो,अणी के खास मेमान क्यूँ
बुलायो,अणी ने कई अक्कल हे,वणी ने कुण पेचाणे हे.आप गादी-तकिया बिछाओ तो ई केगा
कुर्सी वेती तो हऊ वेतो,आप कुर्सी बिछई तो दो तो केगा अरे भई यो कई कर्यो,यो तो
भारतीय शास्त्रीय संगीत को कारज थो,अठे तो नीचे बैठवा में मजो आतो.केवा को मतलब हे
कि आप कई भी करो ई लोग दु:खी का दु:खी रेवे हे. इण लोग के पेचाण को खास संकट रे हे
ने ई सोचे हे कि म्हाँकी दुकान हमेशा चालनी चइजे.पण दा साब वात या हे,जमानो बदले
हे,मिजाज बदले हे,सोच बदले हे,लोगाँ की ओरखाण बदले हे,अरे आप भी तो बदलो नी.अणा
लोगाँ ने सोचणो चावे कि आज आपरा मूँडा पे लोग आपरी इज्जत करी रिया हे पीठ पाछे आपरी
आबरू का काँकरा करे हे. असो टेम भी आएगो जद आपरा विना भी यो जमानो भी चलेगा ने
मजमा भी चलेगा.आप मठाधीश नी वण्या था वणी का पेला भी तो यो मेलो चाल रियो थो हुकुम
!
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